साइटिका (गृध्रसी) का आयुर्वेद से उपचार .AYURVEDA MANAGEMENT OF SCIATICA-

 साइटिका (गृध्रसी) का आयुर्वेद से उपचार -AYURVEDA MANAGEMENT OF SCIATICA- 
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बिमारियाँ ताले (Lock) की तरह होती हैं, जबकि दवाएं चाभी (Key) की तरह। हर ताले की एक चाबी होती है। कोई भी ताला बनाने वाली कम्पनी कभी भी सिर्फ ताले नहीं बनाती। वह दोनों बनाती है - ताले भी और चाभी भी।

*प्रकृति का नियम (Law of Nature):*
प्रकृति भी ठीक इसी तरह कार्य करती दीखती है। वह समस्याएँ भी बनाती व समाधान भी।  

इसलिये, हर समस्या का समाधान होता है। किन्तु, समाधान प्रायः छिपे हुए रहते हैं, जिन्हें हम लोगों को अपने प्रयासों से खोजना पड़ता है ।

इसी तरह हर बीमारी की एक खास दवा होती है। लेकिन दवा तब तक अज्ञात रह सकती है जब तक कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत से इसे खोज नहीं लेता। 

*आयुर्वेद आचार्यों ने खोजीं विभिन्न रोगों की विशिष्ट औषधियाँ:*
बहुत पहले, आयुर्वेद के आचार्यों ने विभिन्न रोगों के उपचार के लिए विशिष्ट दवाओं का पता लगाया लिया था। उदाहरण के लिए, उन्होंने बताया -
• पुष्करमूल विशेष रूप से हृदय रोग (हृच्छूल / पार्श्वशूल - Angina) की विशिष्ट औषध है।
• एरण्डमूल नाडी-तन्त्र के रोगों के लिए विशिष्ट है; तथा
• मुस्तक... अतिसार के लिए।

*आचार्य चक्रदत्त ने खोजी सायटिका की विशिष्ट औषधी - पारिजात:*

उन्हीं दिनों आचार्य चक्रदत्त ने भी अपना अनुभव संसार को बताते हुए कहा - 'पारिजात गृध्रसी की प्रभावशाली औषधी है।'

उनका अनुभव काम कर गया। बाद के वैद्यों ने गृध्रसी रोग में पारिजात का विशिष्ट उपयोग किया और अनगिनत रोगियों को आराम दिया।

*आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी पारिजात के गुण-कर्म स्वीकारे:*
हाल के वर्षों में, चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी आचार्य चक्रदत्त के कथन की पुष्टि करते हुए बताया कि पारिजात में निम्न गुण-कर्म रहते हैं -
• यह शोथहर (Anti-inflammatory) है;
• यह वेदनाहर (Analgesic) है;
• यह ज्वरनाशक (Anti-pyretic) है;
• यह आमवात-रोधी (Anti-rheumatic) है;
• यह नाडी-बल्य (Nerve tonic) है;
• यह मनोबल्य (Anti-depressant) है; तथा
• यह मनोशामक (Sedative) है।

कहने की जरूरत नहीं है कि पारिजात की उपरोक्त सभी क्रियाएं इसे साइटिका के उपचार में एक विशिष्ट दवा बनाती हैं।

*पारिजात पर हमारे चालीस वर्षों के चिकित्सकीय अनुभव:*
अंत में, हम चालीस वर्षों में फैले अपने स्वयं के अनुभवों पर आते हैं।

कुल मिलाकर, साइटिका से पीड़ित अधिकांश रोगियों में हम लोगों ने पारिजात को काफी प्रभावी पाया है।

अधिकांश रोगियों में, उपचार शुरू करने के तीन दिनों के भीतर सुधार आने लगता है। कभी-कभी, सुधार दो दिनों में या उससे भी पहले आने लगता है। कुछेक मरीज़ों को तो पहली ही मात्रा से सुधार आने लगता है।

ज्यादातर मामलों में सुधार निम्न रीति से होता है -

1. दर्द में राहत (कमर से पैर तक)। राहत बहुत कम से लेकर काफी अधिक तक हो सकती है, तथा धीरे-धीरे भी हो सकती है, तथा जल्दी भी।
2. रोगी के बैठने, खड़े होने, और चलने की क्षमता (पहले सहारे के साथ और बाद में बिना सहारे के) में बढ़ौतरी होती है।
3. कमर व टाँग की जाड्यता व खिंचावट में कमी आती है।
4. रोगी को अच्छा लगने लगता है।

फिर भी, अंतिम परिणाम बहुत कुछ मूलभूत विकृतियों पर निर्भर करता है।ये निम्न हो सकती हैं -
• कटि-वात (Lumbar spondylosis);
• मेरुदण्ड-भ्रंश (PIVD);
• मेरुदण्डगत-तरुणास्थि क्षय (Disc degeneration);
• कटिशूल (Low backache)

पारिजात मुख्य रूप से रीढ़ में शोथ-युक्त (Inflamed) व क्षतिग्रस्त (Damaged) धातुओं और दबी हुई नाडियों (Compressed nerves) पर कार्य करके दर्द से राहत प्रदान करता है। जबकि अन्तिम परिणाम इस बात पर भी निर्भर करता है कि मूलभूत विकृतियों का उपचार कैसे किया जाता है।

उदाहरण के लिए, कटि-वात (Lumbar spondylosis) में मूलभूत विकृतियों, जैसे -  तरुणास्थि-क्षय (Cartilage degeneration), क्षति (Trauma), संक्रमण (Infections), ट्यूमर (Tumors) आदि का भी सन्तोषजनक (दवा या शल्यक्रिया द्वारा) उपचार करना भी अनिवार्य होता है।

*निष्कर्ष:*
पारिजात कटिशूल (Low backache) व गृध्रसी (Sciatica) के लिए एक विशेष औषध है, तथा पारिजात के कटिशूल (Low Backache) व गृध्रसी (Sciatica) रोगों का उपचार अधूरा ही रहता है। दूसरे शब्दों में, पारिजात कटिशूल व गृध्रसी की खास दवा (Specific Drug) है, जिससे रोगी को दर्द, जकड़न और सूजन में काफी अधिक / सम्पूर्ण लाभ मिल सकता है।

*उपयोग (Usage):*
पारिजात निम्न रूप में उपलब्ध है -
*पारिजात घन टैब्लॅट (Parijata ghan tab)* 600 मिलीग्राम घन (Extract) 3 ग्राम चूर्ण के बराबर।

 दर्द की तीव्रता और शरीर के वजन के आधार पर, पारिजात टैब्लॅट 1-2 टैब्लॅट्स, दिन में 3-6 बार से आरम्भ करें।  इसे भोजन के तत्काल बाद, सादे पानी के साथ लेना चाहिए। सुधार होने पर, मात्रा धीरे-धीरे कम करते जायें।
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