Ayurvedic Management of Leucorrhea (whitish discharge per vaginal ) श्वेतप्रदर की आयुर्वैदिक चिकित्सा


श्वेतप्रदर (Leucorrhea / Whitish discharge per vagina) महिलाओं में होने वाली एक  आम समस्या है, जिससे महिला को शारीरिक कष्ट के साथ-साथ मानसिक कष्ट भी होता है।  यह रोग होने पर निम्न आयुर्वैदिक उपचार का उपयोग किया जा सकता है - 

1. जीवाणु-रोधक (Anti-bacterial)औषधियाँ:
श्वेतप्रदर का मुख्य हेतु जीवाणुओं (bacteria) से होने वाला योनिगत संक्रमण (Infection on the uterus and associated organs) होता है, अतः इसकी चिकित्सा में जीवाणु-रोधक औषधियाँ प्रयोग की जानी चाहिए, यथा - 

चिरायता, अतिविषा, गन्धक, यशद (Infexie tablet);
• शिलाजतु, स्फटिका, टंकण।
• चिरायता (Chirayata ext tab 600 mg, सुदर्शन-घन वटी);
• गुग्गुलु, भल्लातक, चित्रक (Revplaq / रिवप्लाॅक टैबलॅट);
• गुग्गुलु (त्रिफला गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु); 
• मञ्जिष्ठा (महामञ्जिष्ठादि क्वाथ-घन टैबलॅट, Manjishtha ext tab);
• सारिवा (Sariva ext tab, सारिवादि वटी);
• निम्ब (Nimba ext tab, निम्बादि चूर्ण, पञ्चतिक्तघृत-गुग्गुलु)

2. मधुरिका-रोधक (Anti-fungal) औषधियाँ:
श्वेतप्रदर का दूसरा मुख्य हेतु मधुरिका (fungi)  से होने वाला योनिगत संक्रमण होता है, अतः इसकी चिकित्सा में मधुरिका-रोधक औषधियाँ प्रयोग की जानी चाहिए, यथा - 
• चक्रमर्द, करञ्ज, मञ्जिष्ठा (tab); अथवा
• हरिद्रा (tab), दारुहरिद्रा (tab), निम्ब (tab); अथवा
• सारिवा (tab), शुण्ठी (tab), दारुसिता (tab)।

3. गर्भाशय-बल्य (Uterine tonic) औषधियाँ:
गर्भाशय का दौर्बल्य श्वेतप्रदर का अन्य महत्वपूर्ण हेतु होता है। इसकी चिकित्सा के लिए 
गर्भाशय को बल देने वाली औषधियों का प्रयोग किया जाता है, यथा - 

अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm tablet); अथवा
• शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, त्रिवंग (Fertie-F tablet); अथवा
• पत्रांग  (tab / आसव), मुशली (tab / पाक), शुण्ठी (tab / सौभाग्य-शुण्ठी पाक)।

4. आर्तव-जनन औषधियाँ  (Drugs to increase menstrual flow):
अल्पार्तव (Oligo-menorrhea) अथवा अनियमित-आर्तव (Irregular menses) स्त्री के शरीर में अपान वायु दुष्टि (Female hormonal dysfunction) का परिचायक हैं, जिसे प्राकृत अवस्था में लाने के लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है -
 
• गर्भाशय को बल देने वाली औषधियाँ (Drugs to reinforce endometrial proliferation) - अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm tablet); व
• आर्तव-जनन औषधियाँ (Drugs to increase menstrual flow) - उलटकम्बल, हीराबोल, घृतकुमारी (Mensiflo tablet) ।

5. रसायन (General tonic) औषधियाँ:
बहुत बार सामान्य दौर्बल्य (General weakness) श्वेतप्रदर का हेतु होता है। ऐसे में निम्न प्रकार की औषधियों का प्रयोग करना ध्येय होता है, यथा - 

• सामान्य रसायन औषधियाँ -  शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक, यशद (Minovit tablet); अथवा
कैल्सियम की आपूर्ति करने वाली रसायन औषधियाँ - मुक्ताशुक्ति,  आमलकी, अभ्रक, यशद (Ossie tablet); अथवा
• यकृत् की क्रिया (Liver functions) सुधारने वाली औषधियाँ - भूम्यामलकी (Phylocil tablet), काकमाची, शरपुंखा (Livie tablet)।

6. शोथहर (Anti-inflammatory) औषधियाँ:
श्वेतप्रदर की सम्प्राप्ति में स्त्री-प्रजनन अंगों (Female genital organs) में शोथ (Inflammation) एक मुख्य विकृति हो सकती है । ऐसे में निम्न प्रकार की शोथहर (Anti-inflammatory) औषधियों का प्रयोग करना लाभकारी होता है, यथा - 
शल्लकी, एरण्डमूल, जातीफल (Loswel tablet); अथवा
• गुग्गुलु योग; अथवा
• दशमूल योग

7. ग्राही (Astringent) औषधियाँ:
श्वेतप्रदर की व्याधि-विपरीत (Symptomatic) चिकित्सा के लिए निम्न प्रकार की ग्राही औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है, यथा - 
• रसौत, जामुन-गुठली, आम्र-मज्जा; अथवा
• मुस्तक, बिल्व-मज्जा, मोचरस; अथवा
• पुष्यानुग चूर्ण।

8. मेध्य रसायन (Nootropic) औषधियाँ:
मानसिक तनाव / चिन्ता, तथा मनो-अवसाद भी कभी-कभी श्वेतप्रदर पैदा कर सकते हैं । ऐसे में निम्न प्रकार की मेध्य रसायन औषधियों का प्रयोग करना लाभकारी होता है, यथा - 
मानसिक तनाव / चिन्ता (Mental stress / anxiety) होने पर मन को शान्त करने वाली औषधियाँ - ब्राह्मी, तगर (Mentocalm tablet); अथवा
• मनो-अवसाद (Mental depression) होने पर मन को बल देने वाली औषधियाँ - ज्योतिष्मती, अकरकरा, वचा, गण्डीर (Eleva tablet)।

9. निदानार्थकर रोग चिकित्सा  (Treat the underlying cause):
श्वेतप्रदर पैदा करने वाले अन्य किसी भी रोग की चिकित्सा करना अनिवार्य होता है। 

10. स्थानिक चिकित्सा  (Local treatment):
उत्तर-वस्ति, पिचु, योनिप्रक्षालन द्वारा यथावश्यक स्थानिक चिकित्सा करें ।

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_Released for the information of AYUSH doctors


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