THERAPEUTIC USES OF BHUMI-AMALAKI भूम्यामलकी के मुख्य चिकित्सकीय उपयोग :-

THERAPEUTIC USES OF BHUMI-AMALAKI
भूम्यामलकी के मुख्य चिकित्सकीय उपयोग :- 

भूम्यामलकी  आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण औषधि है, जिसे अनेकों रोगों की चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाया जाता है। तो भी, इसके चिकित्सकीय प्रयोग सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, जिनकी इस लेख में चर्चा की जा रही है।  

भूम्यामलकी पर आयुर्वेद के आचार्यों का पिछले हज़ारों वर्षों से चला आ रहा अनुसंधान व अनुभव;
• पिछले कई सौ वर्षों से, विश्व के अनेकों देशों में चले आ रहे पारम्परिक चिकित्सकीय अनुभव;
• पिछले लगभग सौ वर्षों से विश्व भर में भूम्यामलकी पर हुआ वैज्ञानिक अनुसंधान; व

भूम्यामलकी के चिकित्सीय उपयोग:-

1. विषाणुज संक्रमण (Viral infections) -

विषाणुहर (Antiviral) होने के कारण भूम्यामलकी विषाणुओं की वृद्धि (Replication) को रोकती है, व ओजस् बढ़ाते हुए शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को मज़बूत बनाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का विषाणुज संक्रमण (Viral infection) होने पर भूम्यामलकी का उपयोग किया जा सकता है, जैसे - विषम ज्वर (Viral fevers), 
विसर्प / कक्षा (Herpes zoster), 
विस्फोट (Herpes simplex), 
विषाणुज यकृत्शोथ (Viral heparitis), 
टाॅर्च (TORCH infections), 
विषाणुज सन्धिशोथ (Viral arthritis), इत्यादि।

2. आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorders) -

भूम्यामलकी एक प्रभावशाली रसायन (Immunomodulator) है, तथा शरीर के किसी भी अंगावयव या स्रोतस् में आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorder) होने पर इसका उपयोग किया जा सकता है, जैसे -
आमवात (RA),
साम-विषज सन्धिशोथ (Ankylosing spondylitis), किटिभ (Psoriasis),
चर्म-कुष्ठ (Lichen planus),
आमविषज रक्तदुष्टि (SLE),
सामविषज ग्रहणी (Inflammatory Bowel Disease), 
मधुमेह (Diabetes mellitus), इत्यादि।

3. यकृत् रोग (Liver disorders) -
  
भूम्यामलकी  यकृत् रोगों की चिकित्सा के लिए एक श्रेष्ठतम औषध विकल्प (Drug of Choice) के रूप में उभर के आई है। यह कई प्रकार से कार्य करते हुए यकृत्-गत रोगों को दूर करती है, यकृत् को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, जैसे - कामला (Jaundice), 
विषाणुज यकृत्शोथ (Viral heparitis), 
विषज यकृत्शोथ (Toxic heparitis), 
यकृत्-दुष्टि (Abnormal liver enzynes), 
यकृत्-गत मेदो-संचय (Fatty infiltration of the liver), 
पित्ताशय शोथ (Cholecystitis), 
पित्ताशय शर्करा (Sludge), 
साध्य-यकृत्-क्षयः (Early cirrhosis of liver), इत्यादि।

4. वृक्क एवं मूत्र रोग (Kidney & Urinary disorders) -

यकृत् रोगों की ही भाँति, भूम्यामलकी को कई प्रकार के वृक्क एवं मूत्रगत रोगों (Kidney & Urinary disorders) में भी काफ़ी प्रभावशाली पाया गया है। यह कई प्रकार से कार्य करते वृक्क-गत रोगों को दूर करती है, वृक्क को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, मूत्र की उत्पत्ति बढ़ाती है, तथा मूत्राश्मरी को घोल/तोड़ कर बाहर निकालने में सहायता करती है।
 जैसे - साध्य वृक्क-अक्षमता (Reversible renal failure) जिसमें ब्लड यूरिआ व सीरम क्रिएटिनीन बढ़ने लगते हैं, 
कफज शोथ (Nephrotic syndrome / Renal edema), 
कफज उदर रोग / जलोदर (Nephrotic syndrome / Renal ascites), इत्यादि।

5. मेदो-दुष्टि (Dyslipidemias) :-

भूम्यामलकी  मुख्य रूप से यकृत् की क्रिया में सुधार लाते हुए बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ने में सहायता करती है।
अतः इसका उपयोग, 
बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करने, व 
कम हुई निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ाने के लिए किया जाता है।  
इसके साथ-साथ, इसका उपयोग 
स्थौल्य (Obesity), 
धमनीप्रतिचयः (Atherosclerosis), 
हृद्-धमनी-रोग (CAD), 
शिरो-धमनी-रोग (CVA), इत्यादि।

6. मधुमेह (Diabetes mellitus) :-

भूम्यामलकी कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ी हुई रक्त-शर्करा (Blood sugar) कम करती है।  साथ ही,
यह बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करके, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ा कर इस रोग की चिकित्सा में  सहायता करती है। यही नहीं, यह रक्त को पतला करती है, व इस प्रकार से रक्त-स्कन्दन (Thrombus formation) को रोकती है।  इन सब कर्मों को देखते हुए, भूम्यामलकी  का मधुमेह व उससे होने वाले कई प्रकार के उपद्रवों की चिकित्सा के लिए उपयोग में लाया जाता है।

7. उच्च रक्तचाप (Hypertension) -

भूम्यामलकी  कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ा हुई रक्त-चाप (High BP) कम करती है।  यह धमनी-विस्फारण (Vasodilation) करती है, बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, रक्त को पतला करती है, वृक्क-यकृत्-थायरायड की विकृतियों को दूर करती है। इसी आधार पर भूम्यामलकी  का उच्च रक्तचाप व उससे पैदा होने वाले उपद्रवों की चिकित्सा में किया जाता है।

8. वातरक्त (Raised serum uric acid / Gout) -

भूम्यामलकी  कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़े हुए रक्त-गत यूरिक एसिड को कम करती है।  यह यूरिक एसिड का बनना कम करती है, बने हुए को वृक्कों के माध्यम से निकालती है, वृक्कों की विष द्रव्यों (Toxins) से रक्षा करती है।  इसी आधार पर भूम्यामलकी  का उपयोग वातरक्त में किया जाता है।


9. जीवाणु-जन्य संक्रमण ( Bacterial infections) -

भूम्यामलकी पर हुए अनुसंधान से पता चलता है कि यह कई प्रकार के जीवाणुओं से होने वाले संक्रमण नष्ट करता है, इनमें वे जीवाणु भी शामिल हैं जिन पर आजकल उपलब्ध अनेकों एण्टिबाॅयटिक्स कोई असर नहीं डालतीं। इसी आधार पर भूम्यामलकी का उपयोग कई प्रकार के जीवाणु-जन्य संक्रमणों (Bacterial  infections) की चिकित्सा के लिए करते हैं।

10. विषार्बुद (Malignancy) -

भूम्यामलकी जहाँ एक ओर ओजस् में वृद्धि करते हुए देह की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ करती है, वहीं दूसरी ओर यह विषार्बुद के तेज़ी से बढ़ते हुए कोषाणुओं को भी नष्ट करने में सहायता करती है, किन्तु स्वस्थ कोषाणुओं पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।  अतः विषार्बुद की चिकित्सा में एक सहायक औषधि के रूप में भूम्यामलकी का उपयोग किया जा सकता है।

11. मलेरिया  (Malaria) -

भूम्यामलकी शाइज़ाँट अवस्था में मलेरिया पैरासाइट की वृद्धि को रोकते हुए,
भूम्यामलकी  मलेरिया की चिकित्सा में सहायक होती है। विशेषकर, मलेरिया के ऐसे रोगी जिनमें क्लोरोक्वीन तथा अन्य मलेरिया-नाशक औषधियाँ काम नहीं करतीं, उनमें भूम्यामलकी का उपयोग अवश्य किया जाना चाहिये।

12. शोथ (Inflammation) -

भूम्यामलकी देह में शोथ (Inflammation) पैदा करने वाले अनेकों तत्वों को रोकते हुए अनेकों कारणों से होने वाले शोथ को कम करती है (Anti-inflammatory), जो इसे और अधिक लाभदायक औषधि बनाता है।
अतः संक्रमण (Infections), 
असात्म्यता (Allergy), 
आमविष (Auto-immunity), 
आघात (Trauma) 
इत्यादि से पैदा होने वाले शोथ (Inflammation) की चिकित्सा में, मुख्य चिकित्सा के साथ-साथ सहायक औषधि के रूप में भूम्यामलकी का उपयोग किया जा सकता है।

उपलब्धता (Availability) -
Phylocil Tablet (फ़ाइलोसिल टैबलॅट): भूम्यामलकी इक्स्ट्रैक्ट (10:1) 500 मि.ग्रा. 
(5 ग्राम भूम्यामलकी चूर्ण के बराबर )
मात्रा: 1-2 टैब्लॅट, दिन में 3-6 बार नियमित रूप से, भोजन के तत्काल बाद। इच्छित लाभ मिलने पर  मात्रा धीरे-धीरे कम करते जाएँ।


LIKE ❤️ SHARE ♻️ SUBSCRIBE ✅ COMMENTS 📝

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ