उच्च-रक्तचाप का आयुर्वैदिक उपचार -. Manage High Blood Pressure through the ayurveda-


उच्च-रक्तचाप का आयुर्वैदिक उपचार कैसे करें?
How to Manage High Blood Pressure?

यदि वैश्रामिक-दाब (Diastolic pressure) लगातार 90 mm Hg से अधिक व सांकोचिक-दाब (Systolic pressure) लगातार 140 mm Hg से अधिक रहता है तो इसे रक्तदाब-वृद्धि / उच्च-रक्तचाप / वृद्ध-व्यान / वृद्ध-रक्तचाप (Hypertension / High BP) इत्यादि नामों से पुकारा जाता है।

सम्प्राप्ति आधारित उपचार
Pathogenesis-based Management--

आयुर्वेद रक्तदाब (BP) को नियंत्रित करने वाले वात-दोष (Neuro- endocrine system) के भेद को व्यान-वात कहता है, जो अनेकों प्रकार की सूक्ष्म प्रक्रियाओं के द्वारा रक्तदाब (BP) को साम्यावस्था में रखने का हर क्षण प्रयास करता रहता है।  

दूसरी ओर, शरीर के भीतर व बाहर मौजूद असंख्य कारण रक्तदाब (BP) को अस्थिर करने में लगे रहते हैं।  प्रायः देखा जाता है कि आयु बढ़ने के साथ-साथ, रक्तदाब (BP) को साम्यावस्था में रखने वाली प्रक्रियाओं में कुछ विषमताएँ (Dysfunction) आने लगती हैं, जिसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति का रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है।  इन विषमताओं के मुख्य मार्ग हैं - 

1. अत्यधिक मानसिक तनाव से प्राण-वात (Cognitive functions) अतिक्रियाशील हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यान-वात के अतिक्रियाशील (Hyperactive) होने से रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है। 

2. बाह्य व आभ्यन्तर, असंख्य कारणों से उदान-वात (Hypothalamic-pituitary functions) अतिक्रियाशील हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यान-वात के अतिक्रियाशील (Hyperactive) होने से रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है। 

3. अनेकों कारणों से समान-वात (Thyroid) अतिक्रियाशील  हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यान-वात के अतिक्रियाशील (Hyperactive) होने से रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है। 

4. अनेकों कारणों से अपान-वात (Renin-angiotensin system) अतिक्रियाशील हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यान-वात के अतिक्रियाशील (Hyperactive) होने से रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है। 

5. अनेकों कारणों से व्यान-वात (Autonomic nervous system) अतिक्रियाशील हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यान-वात के अतिक्रियाशील (Hyperactive) होने से रक्तदाब (BP) बढ़ने लगता है। 

उपचार (Management):-

निम्न रीति से व्यान-वायु की दुष्टि को दूर करने का प्रयास  किया जाना चाहिए - 
I. अत्यधिक क्रियाशील व्यान-वायु का शमन करें:
Harmonize the hyperactive autonomic nervous system. -
इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है - 

सर्पगन्धा - यह प्रत्यक्ष रूप से (Directly) बढ़े हुए व्यान-वायु का शमन करते हुए रक्त-दाब कम करता है।
रसायन चिकित्सा - अश्वगंधा, आमलकी, हरीतकी इत्यादि अप्रत्यक्ष रूप से (Indirectly) बढ़े हुए व्यान-वायु का शमन करते हुए रक्त-दाब कम करते हैं।

II. बढ़े हुए प्राण-वायु का शमन करें:
Harmonize the hyperactive cognitive functions. -
इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है - 

शंखपुष्पी - यह उत्तेजित मन को शान्त करके चिन्ता, भय, क्रोध इत्यादि को कम करके बढ़े हुए प्राण वायु का शमन करती है।
ब्राह्मी - शंखपुष्पी की तरह यह भी उत्तेजित मन को शान्त करके चिन्ता, भय, क्रोध इत्यादि को कम करके बढ़े हुए प्राण वायु का शमन करती है।
तगर - यह भी उत्तेजित मन को शान्त करके चिन्ता, भय, क्रोध इत्यादि को कम करके बढ़े हुए प्राण वायु का शमन करती है।

III. बढ़े हुए अपान-वायु का शमन करें:
Harmonize the hyperactive renin-angiotensin system. -
इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है - 

पुनर्नवा - यह विशेष रूप से मूत्र-मार्ग (Urinary system) व मल-मार्ग (Hepato-biliary system) की विषमताओं को दूर करते हुए अपान-वायु का शमन करती है।
गोक्षुर - यह विशेष रूप से मूत्र-मार्ग (Urinary system) की विषमताओं को दूर करते हुए अपान-वायु का शमन करती है।

IV. बढ़े हुए समान-वायु का शमन करें:
Harmonize the hyperactive thyroid and liver functions. -
इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है - 

भूम्यामलकी - यह विशेष रूप से चुल्लिका-ग्रन्थि (Thyroid gland) व यकृत् (Liver) की विकृतियों को दूर करते हुए समान-वायु का शमन करती है।
कटुकी - यह भी चुल्लिका-ग्रन्थि (Thyroid gland) व यकृत् (Liver) की विषमताओं को दूर करते हुए समान-वायु का शमन करती है।
गुडूची - यह भी चुल्लिका-ग्रन्थि (Thyroid gland) व यकृत् (Liver) की विषमताओं को दूर करते हुए समान-वायु का शमन करती है।

V. बढ़े हुए उदान-वायु का शमन करें:
Harmonize the hyperactive hypothalamic-pituitary functions.-
इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग किया जा सकता है - 

जटामाँसी- यह विशेष रूप से पीयूष-ग्रन्थि (Pituitary gland) की विषमताओं को दूर करते हुए उदान-वायु का शमन करती है।
वचा - यह भी पीयूष-ग्रन्थि (Pituitary gland) की विषमताओं को दूर करते हुए उदान-वायु का शमन करती है।

परिणाम (Result):-
उपरोक्त रीति से दोष-प्रत्यनीक (Disease-modifying) व व्याधि-प्रत्यनीक (Symptomatic) चिकित्सा के समन्वय के आधार पर विकसित उच्च-रक्तदाब (Hypertension) की चिकित्सा का अति-सन्तोषजनक प्रभाव मिलता है। रोगी का बढ़ा हुआ रक्त-दाब धीरे-धीरे कम होता है व प्रभाव दीर्घकालिक होता है।

_Ideal Ayurvedic Antihypertensive Medicine:_

• भूम्यामलकी इक्स्ट्रैक्ट 250 mg
• पुनर्नवा इक्स्ट्रैक्ट 200 mg
• शंखपुष्पी इक्स्ट्रैक्ट 150 mg
• जटामाँसी इक्स्ट्रैक्ट  100 mg
• सर्पगन्धा इक्स्ट्रैक्ट 100 mg
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