वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषम ज्वर) का आयुर्वैदिक उपचार (Ayurvedic Management of Viral Infections)

वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषम ज्वर) का आयुर्वैदिक उपचार:-
(Ayurvedic Management of Viral Infections)


वायरस (Virus) को विषाणु का नाम दिया गया है। कारण, मानव देह में प्रवेश करने के बाद, यह किसी भी अन्य खतरनाक विष की तरह, तीव्र गति से बढ़ता, फैलता, विकार/उपद्रव पैदा करता, व कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बनता है।

अधिकांश वायरस दो प्रकार की तकलीफ़ें पैदा करते हैं - 
i. सामान्य तक़लीफ़ें - जैसे कि बुखार, सिरदर्द, ज़ुकाम, गले में दर्द, खाँसी, पूरे शरीर की मांसपेशियों, हड्डियों, व सन्धियों में दर्द, कमज़ोरी, थकावट, बेचैनी वगैरह; तथा
ii. विशेष तक़लीफ़ें - जो हरेक वायरल इन्फ़ैक्शन में अलग होती हैं, जैसे चिकुनगुण्या में हड्डियाँ टूटने जैसी दर्दें, डैंग्यु में दर्दों के साथ-साथ त्वचा में दाने निकलना व रक्तस्राव होना, हर्पीज़ ज़ाॅस्टर में जलन व दर्द से युक्त छाले, वगैरा।  

आयुर्वेद में अलग-अलग वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ को अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जैसे - विषम ज्वर, वात/कफ-प्रधान सन्निपात ज्वर, विसर्प इत्यादि। सभी की चिकित्सा के लिए कुछ सामान्य व कुछ विशेष औषधियों का उपयोग करने का विधान है। 

चिकित्सा लक्ष्य:-
वायरल (विषाणुज) संक्रमणों की सामान्य चिकित्सा के मुख्य चार लक्ष्य रहते हैं -
I. वायरस (विषाणु) का नाश;
II. रोगी की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बलवान बनाना;
III. रोगी को होने वाली तक़लीफ़ें दूर करना; व
IV. स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमण से बचाना।

उपरोक्त चारों लक्ष्यों की सिद्धि के लिए निम्न प्रकार की चिकित्सा द्वारा की जा सकती है - 

I. वायरस (विषाणुहर) का नाश करने वाली औषधियों का प्रयोग करें:(Use antiviral drugs)

वायरस (विषाणु) का नाश करने के लिए आयुर्वेद का शाश्वत सिद्धाँत - 'विषस्य विषं औषधम्' अर्थात् विष ही विष की दवाई है, पूरी तरह से लागू होता है।
इसी आधार पर वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ में भल्लातक का उपयोग बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। महर्षि चरक ने इसे अमृत का दर्जा देते हुए, सभी कफज रोगों की प्रभावशाली औषधी बताया, तो आचार्य भावप्रकाश ने इसे ज्वरहर बता कर इसे ज्वर चिकित्सा में उपयोगी बताया।  विभिन्न विषम-ज्वरों की चिकित्सा के लिए उपयोग में लायी जाने वाली संजीवनी वटी का एक महत्वपूर्ण घटक भल्लातक है। 

विषम ज्वरों (वायरस इन्फ़ैक्शन्ज़) की चिकित्सा में, आयुर्वेद की अन्य महत्वपूर्ण औषधी है - कालमेघ, जिसकी कार्मुकता आधुनिक रिसर्च से भी सिद्ध हो चुकी है।  वैज्ञानिकों ने पशुओं पर किये गये अनुसंधान में पाया कि कालमेघ में रहने वाले अनेकों कार्यकारी तत्व वायरस को खत्म करने में सक्षम होते हैं। 

एक अन्य औषधी जो विषाणुज संक्रमण में प्रभावशाली पाई गई है, वह है - दुग्धिका।  आयुर्वेद में इस औषधी को कृमिघ्न व विषहर माना गया है। वैज्ञानिक अनुसंधान से पता चला कि दुग्धिका में कई महत्वपूर्ण औषधीय गुण-कर्म हैं, जिनमें से एक यह है कि, यह वायरस को नष्ट करती है। 

इन औषधियों को अकेले अथवा संयुक्त रूप से प्रयोग किया जा सकता है। अथवा भल्लातक, कालमेघ, व दुग्धिका से बनी medicine  का भी उपयोग किया जा सकता है। 

II. रोग-प्रतिरोधक-क्षमता-वर्धक औषधियों का प्रयोग करें:(Use immune-boosting drugs):-

क्योंकि व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक शक्ति के कमज़ोर होने पर वायरल (विषाणुज) संक्रमण व उससे होने वाली विकृतियों/उपद्रवों की सम्भावना अत्यधिक बढ़ जाती है, अतः इससे सुरक्षा व इसकी चिकित्सा के लिए रोग-प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने वाली रसायन औषधियों का का उपयोग अनिवार्य है।  आयुर्वेद में अनेकों रसायन औषधियों में मुख्य हैं - अश्वगन्धा, गुडूची, तुलसी, पिप्पली, व यशद। कुछ अन्य औषधियों का भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे - सुवर्ण (सुवर्णप्राशन), निम्बु, दालचीनी, यशद, हरी चाय, हरिद्रा इत्यादि।

इन औषधियों को अकेले अथवा संयुक्त रूप से प्रयोग किया जा सकता है। अथवा अश्वगन्धा, गुडूची, तुलसी, पिप्पली, व यशद से बनी  टैबलॅट  का भी उपयोग किया जा सकता है। 

III. रोगी के कष्ट दूर करने वाली औषधियों का प्रयोग करें:(Use supportive drugs):-

वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषाणुज संक्रमण) होने पर रोगी को होने वाली तक़लीफ़ों को दूर करने के लिए भरपूर कोशिश की जानी चाहिए।  जैसे - 
• सिर-दर्द व पूरे शरीर में दर्दें होने पर वत्सनाभ, गोदन्ती, जातीफल , पिप्पलीमूल, रक्तमरिच, तगर, पारसीक यवानी इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। 
• अतिसार होने पर अतिविषा, पञ्चामृत-पर्पटी, मुस्तक, कुटज, बिल्व, दारुहरिद्रा इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। 
• कास होने पर शटी, मधुयष्टी, ज़हरमोहरा, यशद, कण्टकारी,  वासा, तुलसी, क्षार, तालीस, इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। 
• शरीर के किसी भी अंगावयव व धातु में शोथ (inflammation) होने पर शल्लकी, एरण्डमूल (Loswel Tablet) गुग्गुलु, रास्ना, दशमूल इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है। 
• शरीर से रक्तस्राव होने पर एरण्डकर्कटी पत्र , नागकेसर, बोल-पर्पटी इत्यादि। 

IV. रोगी का बल बढ़ाने वाली औषधियों का प्रयोग करें:(Use antioxidant drugs):-

वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषाणुज संक्रमण) होने पर रोगी को बेहद कमज़ोरी होती है।  कमज़ोर लोगों को वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ बलवान लोगों की अपेक्षा अधिक होती हैं।  इस कारण, वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषाणुज संक्रमण) होने पर रोगी को पोषक रसायन औषधियों का प्रयोग कराना चाहिए।  
महत्वपूर्ण पोषक रसायन औषधियाँ हैं - शिलाजतु, आमलकी, यशद, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक।

पथ्य-अपथ्य:
वायरल इन्फ़ैक्शन्ज़ (विषाणुज संक्रमण) होने पर निम्न सामान्य व रोगानुसार विशेष पथ्य-अपथ्य का पालन कराएं - 
• शारीरिक व मानसिक विश्राम दें।  यथासम्भव स्वस्थ व्यक्तियों से दूरी बनाए रखें ताकि उन्हें भी संक्रमण न हो।
• रुचि के अनुसार हल्का किन्तु पोषक आहार दें। 
• उबाल कर ठण्डा किया, सामान्य अथवा कदुष्ण जल, सामान्य से अधिक मात्रा में दें, ताकि शारीरिक जलीयांश की सम्यक् आपूर्ति हो सके, व तृष्णा, रसक्षय इत्यादि न होने पाएँ। 
• ताज़ी सब्जियाँ व ताज़े फल रुचि तथा आवश्यकता अनुसार खिलाएँ।
• साफ़-सफ़ाई का विशेष ध्यान रखें।  
• नाक व मुँह को मास्क से ढके रखें।  हाथों पर बार-बार सैनिटाइज़र लगा कर उन्हें संक्रमण-मुक्त करते रहें।  
• भीड़ वाली व बन्द जगहों पर न जाएँ। 

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_आयुष चिकित्सकों की सूचना के लिए जारी -_
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