योनिव्यापद हेतु एवम उपचार :-yonivyapad causes and treatment with modern correlation.......

             योनिव्यापद  (yonivyapad)


●योनिव्यापद :-
●  yonivyapad refers to genital tract disorders starting from vulva up to the uterus ...

modern correlation: -
●Yoni -Vyapada has been compared with modern genital disorders as -
°vattja:- Endometriosis
°Pittaja (Pelvic inflammatory disease), °Shleshmiki (Trichomoniasis), °Raktayoni (Dysfunctional   uterine bleeding), 
°Arajska (Secondary amenorrhoea), °Upapluta  (Candidiasis),
° Karnini  (Cervical  ectopy), 
°Vandhya   (Primary   amenorrhoea), °Putraghni(Recurrent  pregnancy     
 loss)
°Udavartini(Dysmenorrhoea),
° Phalini  (Cystocele), 
°Mahayoni(Prolapse) etc.


योनिव्यापद की संख्या -
योनिव्यापदों की संख्या आयुर्वेद के प्रायः सभी संहिताकारों ने योनिरोगों की संख्या २० बतलायी गई उनमें अधिकांशतः समानता होते हुए भी नामकरण, संलक्षणों तथा दोष-कारणता में कहीं- कही अन्तर पाया जाता है .।।                         .
आगे चरक, सुश्रुततथा वृद्धवाग्भट के अनुसार     योनि-व्यापदों के नाम दिये जा रहे हैं।।               .



चरक के अनुसार योनिव्यापद -                 
৭. वातिकी
२. पैत्तिकी
३. श्लैष्मिकी
४. सान्निपातिकी
५. रक्तयोनि
६.अरजस्का
७.अचरणा
८. अतिचरणा
९.प्राक्चरणा
१०. उपप्लुता
११. परिष्लुता
१२. उदावर्तिनी
१३. कर्णिनी
१४. पुत्रघ्नी
१५. अन्तर्मुखी
१६. सूचीमुखी

सुश्रुत के अनुसार योनिव्यापद -
१वातला
२पित्तला
३হलेष्मला
4सर्वजा
५लोहितक्षरा, -क्षया
६बन्ध्या
७अचरणा
८अतिचरणा
९अत्यानन्दो
१०विष्लुता
११परिप्लुता
१२उदावृता
१३क्णिनी
१४जातघ्नी
१५प्रस्रंसिनी (स्रंसिनी)
१६सूचीवक्त्रा

बृद्धवाग्भट के अनुसार योनिव्यापद -
१वातिकी
२पैत्तिकी
३হ्लैष्मिकी
४सान्निपातिकी
५रक्तयोनि
६लोहितक्षया
७विष्लुता
८अतिचरणा
९प्राक्चरणा
१०उपप्लुता
११परिप्लुता
१२उदावृता
१३कर्णिनी
१४पुत्रघ्नी
१५अन्तर्मुखी
१६सूचीमुखी


remember key  -
【चरक तीनो चरणों में दोनों योनि के दोनों मुखों को शुष्क पुत्र उत्पन्न करने पर भी उदार बताते हैं।】
●वातज योनिव्यापद -
          तीन चारण        -1अचरणा (विपलुता)
                                 -2अतिचरणा
                                 -3प्राकचरणा
            दो योनी           -4महायोनि 
                                 -5षण्डीयोनि 
             दो मुख          - 6अंतर्मुख
                                 -7 सूचि मुखी [असाध्य ]                                    8शुष्का 
                                  9पुत्रघ्नी(जातघ्नी)
                                 10.उदावर्तिनी 
                                 11. वातला . .

2. 【चरक प्यार से रक्त पर भी अर्ज करते है ।】
  ●  चरक, पितज योनिव्यापद  - 3    
             (वाग्भट. पितज -2)
                                12. पैतिकी या पित        
                                13. रक्तजा
                                14.अरजसका
वाग्भट नें लोहितक्षया को वातपितज में माना है ।।  
 ●                            15. श्लैष्मिकी
 ●                            16. सन्निपातिकज 

5. 【चरक के वापि  (वातपित्त)-परि वमन करती       है।】

●वातपित्त  योनिव्यापद -
               परी - 17. परिप्लुता   ( परिप्लुता)
                       18. वामिनी।  (लोहितक्षया)

6. चरक जो वका मेरे कर्ण के ऊपर से गया।

●वात कफ योनिव्यापद -  
                  कर्ण -19. कर्णिनी
                  ऊपर -20. उपप्लुता

योनिव्यापद : -
योनिव्यापद संख्या - चरक, सुश्रुत, वाग्भट. - 20

योनिदुष्टि प्रमुख दोष = वात

                    ●योनिव्यापद हेतु -

चरक व सुश्रुत के अनुसार -

【देवों की बीज भी मिथ्या आर्तव में जाकर योनिव्यापद करता है 】

 हेतु - 4

1.दैवकृत (पूर्वजन्मकृत पाप)
3. मिथ्याचरण (आहार विहार)
2.बीजदोष
4. प्रदुष्टार्तव (दूषित)

वाग्भट -6

1. दूषित अन्न
2, विषमांगशयन
3, दूषित आतर्व
4. भृशमैथुन (अति)
5. बीज दोष
6.अपद्रव्य सेवन

                    योनिव्यापद् चिकित्सा

संख्या = 20

1.सामान्य चिकित्सा ( general treatment)
2.दोषानुसार सामान्य (acc.to doshas)
3. विशिष्ट चिकित्सा ( specific treatment)

1. सामान्य चिकित्सा सिध्दान्त :-

योनि रोग मे मुख्यतः वात प्रकुपित होता है।

1. सर्वप्रथम वायु को शमन करने के बाद अन्य दोषों का शमन करना है ।

2. सभी प्रकार की योनि रोगों में स्नेहन, स्वेदन,तथा उसके बाद वमन, विरेचन बस्ति आदि
पंचकर्म करना चाहिए।।

3. स्नेहन, स्वेदन, और बस्ति आदि के पश्चात
ASP(3) चिकित्सा करके है।

-अभ्यंग
- सेक
- प्रलेप पिचु, परिषेक

4.दूध का पान करना चाहिए यह योनि रोग को नष्टकरता है।।

2. दोषानुसार सामान्य चिकित्सा सिध्दातं :- 

१. वातज योनि व्यापद् चिकित्सा -

*वातनाशक (त्रैवृत) स्नेहन, स्वेदन, और बस्ति कर्म

*त्रैवृतं स्नेहनं स्वेदो ग्राम्यानुपौदका रसाः ।

अर्थात ( घृत , तैल , वसा) आदि स्नेहन, स्वेदन , ग्राम्य, आनुप और औदक पशु - पक्षियों का मास सात्म्य होता हैं।।

【रस औषध: पीपल का बड़ा वृक्ष टूट गया】

पप्पल्यादि योग, 
काश्यार्दि घृत,
 बलादि यमक, 
वृषकादि चूर्ण,
 गुडूच्यादि तैल,
गुडूच्यादि क्वाथ

२. पितज योनिव्यापद चिकित्सा -

ASP(3) चिकित्सा- अभ्यंग
                             सेक
                              प्रलेप ,पिचू,परिषेक

1,रक्त पित नाशक शीत अभ्यगं,
2,सेक,
3.प्रलेप, पिचु, परिषेक करते हैं।

३. कफज योनिव्यापद चिकित्सा :-

*रुक्ष और ऊष्ण चिकित्सा करते हैं।
*संशोधित वर्ती का प्रयोग होता है।

- अर्कादि वर्ती
-पिप्पल्यादि वर्ती

वह हंस.     पांच पल्ल।    तक शान्त रहा

वातज:
   कल्क = हंसपदी
    बस्ति = अम्ल द्रव्य से उतर बस्ति

पित्तज
    कल्क= पञ्चवल्कल
     बस्ति= मधुर द्रव्यो से

कफज
      कल्क= श्यामा त्रिवृत
        बस्ति= कटु प्रधान द्रव्यो से

3. विशिष्ट चिकित्सा :-

● उदावर्ता :
त्रैवृतं स्नेहनं स्वेदो ग्राम्यानूपौदका रसा : ।

घृत , तैल,वसा
स्वेदन ---
 ग्राम्य, आनूप, औदक पशु - पक्षी का मास रस

●. अचरणाः

लक्षण: - योनि प्रक्षालन नही --->कृमि ---> खुजली -> रात मे संभोग

चिकित्सा : -
*12 बार गाय के पित मे भावना देने के पश्चात
    उस कपडे को योनि पर रखना ।।

●अतिचरणा - प्राकचरणा:-

*वात नाशक औषधि का प्रयोग करना चाहिए।।
*हंसपदी का कल्क धारण ।।

●.षण्डी :-

*असाध्य होती है. चिकित्सा नहीं की जाती है ।।

महायोनि:-

मधुर वर्ग की औषधियो के क्वाथ मे पकाये सुअर की चर्बी उदावर्ता की चिकित्सा करते है।।

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🌿Ayurmed














 

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