●योनिव्यापद :-
●  yonivyapad refers to genital tract disorders starting from vulva up to the uterus ...
●modern correlation: -
●Yoni -Vyapada has been compared with modern genital disorders as -
°vattja:- Endometriosis
°Pittaja (Pelvic inflammatory disease), °Shleshmiki (Trichomoniasis), °Raktayoni (Dysfunctional   uterine bleeding), 
°Arajska (Secondary amenorrhoea), °Upapluta  (Candidiasis),
° Karnini  (Cervical  ectopy), 
°Vandhya   (Primary   amenorrhoea), °Putraghni(Recurrent  pregnancy     
 loss)
°Udavartini(Dysmenorrhoea),
° Phalini  (Cystocele), 
°Mahayoni(Prolapse) etc.
●योनिव्यापद की संख्या -
● चरक के अनुसार योनिव्यापद -                 
৭. वातिकी
२. पैत्तिकी
३. श्लैष्मिकी
४. सान्निपातिकी
५. रक्तयोनि
६.अरजस्का
७.अचरणा
८. अतिचरणा
९.प्राक्चरणा
१०. उपप्लुता
११. परिष्लुता
१२. उदावर्तिनी
१३. कर्णिनी
१४. पुत्रघ्नी
१५. अन्तर्मुखी
१६. सूचीमुखी
●सुश्रुत के अनुसार योनिव्यापद -
१वातला
२पित्तला
३হलेष्मला
4सर्वजा
५लोहितक्षरा, -क्षया
६बन्ध्या
७अचरणा
८अतिचरणा
९अत्यानन्दो
१०विष्लुता
११परिप्लुता
१२उदावृता
१३क्णिनी
१४जातघ्नी
१५प्रस्रंसिनी (स्रंसिनी)
१६सूचीवक्त्रा
●बृद्धवाग्भट के अनुसार योनिव्यापद -
१वातिकी
२पैत्तिकी
३হ्लैष्मिकी
४सान्निपातिकी
५रक्तयोनि
६लोहितक्षया
७विष्लुता
८अतिचरणा
९प्राक्चरणा
१०उपप्लुता
११परिप्लुता
१२उदावृता
१३कर्णिनी
१४पुत्रघ्नी
१५अन्तर्मुखी
१६सूचीमुखी
● remember key  -
【चरक तीनो चरणों में दोनों योनि के दोनों मुखों को शुष्क पुत्र उत्पन्न करने पर भी उदार बताते हैं।】
●वातज योनिव्यापद -
          तीन चारण        -1अचरणा (विपलुता)
                                 -2अतिचरणा
                                 -3प्राकचरणा
            दो योनी           -4महायोनि 
                                 -5षण्डीयोनि 
             दो मुख          - 6अंतर्मुख
                                 -7 सूचि मुखी [असाध्य ]                                    8शुष्का 
                                  9पुत्रघ्नी(जातघ्नी)
                                 10.उदावर्तिनी 
                                 11. वातला . .
2. 【चरक प्यार से रक्त पर भी अर्ज करते है ।】
  ●  चरक, पितज योनिव्यापद  - 3    
             (वाग्भट. पितज -2)
                                12. पैतिकी या पित        
                                13. रक्तजा
                                14.अरजसका
वाग्भट नें लोहितक्षया को वातपितज में माना है ।।  
 ●                            15. श्लैष्मिकी
 ●                            16. सन्निपातिकज 
5. 【चरक के वापि  (वातपित्त)-परि वमन करती       है।】
●वातपित्त  योनिव्यापद -
               परी - 17. परिप्लुता   ( परिप्लुता)
                       18. वामिनी।  (लोहितक्षया)
6. चरक जो वका मेरे कर्ण के ऊपर से गया।
●वात कफ योनिव्यापद -  
                  कर्ण -19. कर्णिनी
                  ऊपर -20. उपप्लुता
योनिव्यापद : -
योनिव्यापद संख्या - चरक, सुश्रुत, वाग्भट. - 20
●योनिदुष्टि प्रमुख दोष = वात
                    ●योनिव्यापद हेतु -
चरक व सुश्रुत के अनुसार -
【देवों की बीज भी मिथ्या आर्तव में जाकर योनिव्यापद करता है 】
 हेतु - 4
1.दैवकृत (पूर्वजन्मकृत पाप)
3. मिथ्याचरण (आहार विहार)
2.बीजदोष
4. प्रदुष्टार्तव (दूषित)
वाग्भट -6
1. दूषित अन्न
2, विषमांगशयन
3, दूषित आतर्व
4. भृशमैथुन (अति)
5. बीज दोष
6.अपद्रव्य सेवन
                    योनिव्यापद् चिकित्सा
संख्या = 20
1.सामान्य चिकित्सा ( general treatment)
2.दोषानुसार सामान्य (acc.to doshas)
3. विशिष्ट चिकित्सा ( specific treatment)
1. सामान्य चिकित्सा सिध्दान्त :-
योनि रोग मे मुख्यतः वात प्रकुपित होता है।
1. सर्वप्रथम वायु को शमन करने के बाद अन्य दोषों का शमन करना है ।
2. सभी प्रकार की योनि रोगों में स्नेहन, स्वेदन,तथा उसके बाद वमन, विरेचन बस्ति आदि
पंचकर्म करना चाहिए।।
3. स्नेहन, स्वेदन, और बस्ति आदि के पश्चात
ASP(3) चिकित्सा करके है।
-अभ्यंग
- सेक
- प्रलेप पिचु, परिषेक
4.दूध का पान करना चाहिए यह योनि रोग को नष्टकरता है।।
2. दोषानुसार सामान्य चिकित्सा सिध्दातं :- 
१. वातज योनि व्यापद् चिकित्सा -
*वातनाशक (त्रैवृत) स्नेहन, स्वेदन, और बस्ति कर्म
*त्रैवृतं स्नेहनं स्वेदो ग्राम्यानुपौदका रसाः ।
अर्थात ( घृत , तैल , वसा) आदि स्नेहन, स्वेदन , ग्राम्य, आनुप और औदक पशु - पक्षियों का मास सात्म्य होता हैं।।
【रस औषध: पीपल का बड़ा वृक्ष टूट गया】
पप्पल्यादि योग, 
काश्यार्दि घृत,
 बलादि यमक, 
वृषकादि चूर्ण,
 गुडूच्यादि तैल,
गुडूच्यादि क्वाथ
२. पितज योनिव्यापद चिकित्सा -
ASP(3) चिकित्सा- अभ्यंग
                             सेक
                              प्रलेप ,पिचू,परिषेक
1,रक्त पित नाशक शीत अभ्यगं,
2,सेक,
3.प्रलेप, पिचु, परिषेक करते हैं।
३. कफज योनिव्यापद चिकित्सा :-
*रुक्ष और ऊष्ण चिकित्सा करते हैं।
*संशोधित वर्ती का प्रयोग होता है।
- अर्कादि वर्ती
-पिप्पल्यादि वर्ती
वह हंस.     पांच पल्ल।    तक शान्त रहा
वातज:
   कल्क = हंसपदी
    बस्ति = अम्ल द्रव्य से उतर बस्ति
पित्तज : 
    कल्क= पञ्चवल्कल
     बस्ति= मधुर द्रव्यो से
कफज: 
      कल्क= श्यामा त्रिवृत
        बस्ति= कटु प्रधान द्रव्यो से
3. विशिष्ट चिकित्सा :-
● उदावर्ता :
त्रैवृतं स्नेहनं स्वेदो ग्राम्यानूपौदका रसा : ।
घृत , तैल,वसा
स्वेदन ---
 ग्राम्य, आनूप, औदक पशु - पक्षी का मास रस
●. अचरणाः
लक्षण: - योनि प्रक्षालन नही --->कृमि ---> खुजली -> रात मे संभोग
चिकित्सा : -
*12 बार गाय के पित मे भावना देने के पश्चात
    उस कपडे को योनि पर रखना ।।
●अतिचरणा - प्राकचरणा:-
*वात नाशक औषधि का प्रयोग करना चाहिए।।
*हंसपदी का कल्क धारण ।।
●.षण्डी :-
*असाध्य होती है. चिकित्सा नहीं की जाती है ।।
●महायोनि:-
मधुर वर्ग की औषधियो के क्वाथ मे पकाये सुअर की चर्बी उदावर्ता की चिकित्सा करते है।।
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🌿Ayurmed
 
   
   
   
  
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